BA Semester-1 Philosophy - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2633
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र

 

अध्याय -

 

बौद्ध धर्म

 

(Buddhism Philosophy )


प्रश्न- गौतम बुद्ध के जीवन एवं उपदेशों का वर्णन कीजिए।

अथवा
गौतम बुद्ध के प्रमुख सिद्धान्त क्या थे?

उत्तर-

महात्मा बुद्ध का जीवन चरित्र

बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन की बड़ी रानी माया देवी के गर्भ से लुम्बिनी नामक स्थान पर हुआ था। उनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था। वे सूर्यवंशी क्षत्रियों की शाक्य शाखा से सम्बन्ध रखते थे। उनकी जन्मतिथि के बारे में निश्चित रूप से कुछ कहना कठिन है। डा. बी. ए. स्मिथ इसे 566-67 ई. पू. मानते हैं किन्तु अधिकांश विद्वान इसे 563 ई. पू. के मत पर निश्चित है। उनके जन्म के सात दिन बाद ही उनकी माता का निधन हो गया और उनका पालन पोषण उनकी विमाता व मौसी गौतमी देवी ने किया। जनश्रुति है कि सिद्धार्थ के जन्म के समय ज्योतिषियों ने कहा था कि, "राजकुमार या तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा अथवा विरक्त होकर संसार का कल्याण करेगा

राजकुमार सिद्धार्थ बचपन से ही चिन्तनशील, कोमल स्वभाव के तथा एकान्तप्रिय थे। वे जीवन के रहस्यों के प्रति चिंतनशील रहते थे। उनके पिता ने उनको राजसी शिक्षा दी और उन्हें सभी प्रकार के सुख-साधन उपलब्ध कराए। उनके पिता ने अल्पायु में ही उनका विवाह परम सुन्दर राजकुमारी यशोधरा से कर दिया। उनसे एक पुत्र की उत्पत्ति हुई जिसका नाम राहुल रखा गया।

महाभिनिष्क्रमण अथवा महान् त्याग एक दिन राजकुमार सिद्धार्थ ने अपने पिता से नगर देखने की आज्ञा माँगी। राज्य की ओर से यह व्यवस्था कर दी गई कि राजकुमार को नगर में कोई दुःखद घटना या दृश्य दिखाई न दे, किन्तु एक बूढ़ा, रोगी, मृत और चौथी बार जाने पर एक साधु मिला जो अति प्रसन्न था। सिद्धार्थ के लिए ये अनुभव उसे जीवन के सत्य का अर्थ समझा गए। इससे संसार के सभी सुखों से उनका मन उचट गया। संसार के सभी सुखों से विरक्त हो जाने पर राजकुमार सिद्धार्थ ने सत्य तथा अमरता की खोज का निश्चय कर लिया। एक दिन 29 वर्ष की आयु में वे अपनी पत्नी और बच्चे को आधी रात सोते में छोड़कर चुपचाप निकल पड़े। यही घटना महाभिनिष्क्रमण कहलाई।

ज्ञान प्राप्ति- तत्व ज्ञान प्राप्ति कराने की प्रबल इच्छा से वे उस समय के प्रसिद्ध दो विद्वानों आलार कलाम और उद्रक रामपुत्र के आश्रम में कुछ समय तक रहकर अध्ययन करते रहे। इन विद्वानों से उनकी जिज्ञासा शान्त नहीं हुई। अतः वे आधुनिक बोध गया के समीप अरुबेला के घने वन में अपने पाँच साथियों सहित कठोर तपस्या करने लगे। छः वर्षों तक उन्होंने कठोर तप किया जिससे उनका शरीर अशक्त हो गया। काया क्लेश को त्यागकर उन्होंने सुजाता नामक स्त्री से खीर ग्रहण की जिससे नाराज होकर उनके पाँच शिष्य उनका साथ त्याग गए। सात दिन तथा सात रात तक अखण्ड समाधि लगाकर अपने मन के सभी दोषों को मार कर आठवें दिन वैशाख पूर्णिमा की रात्रि को ज्ञान बोध को प्राप्त किया और 'गौतम बुद्ध कहलाए। जिस पीपल के वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान का प्रकाश मिला वह 'बोधिवृक्ष' कहलाया। इस समय वे 35 वर्ष की आयु के थे।

महात्मा बुद्ध प्रचारक के रूप में- 'बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद महात्मा बुद्ध सबसे पहले ऋषिपत्तम (सारनाथ वाराणसी) पहुँचे और वहाँ पर उन्होंने उन पाँच ब्राह्मण साधुओं को 'मध्य मार्ग' का उपदेश दिया जो उन्हें पथभ्रष्ट समझकर साथ छोड़ गए थे। उनका यह उपदेश 'धर्म चक्र प्रवर्तन' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसके बाद वे लगातार 40 वर्षों तक मगध, कौशल, वत्स आदि राज्यों में धर्म प्रचार करते रहे। उनका शरीर बड़ा स्वस्थ था। वर्षा काल वे एक स्थान पर रहकर बिताते थे। वे सदा अपने विरोधी सम्प्रदायों के कट्टर समर्थकों से जूझते रहे और ब्राह्मणों को भी शास्त्रार्थों में पराजित किया।

महापरिनिर्वाण 45 वर्ष तक निरन्तर धर्म प्रचार करके 80 वर्ष की परिपक्व अवस्था में 483 ई. पू. में कुशीनगर के समीप महात्मा बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया। उनके भक्त शिष्यों ने उनके शरीर की भस्म को देश के आठ स्थानों में स्थापित कर स्मारक स्तूप बनवाए।

बुद्ध की शिक्षाएँ (सिद्धान्त )

(A) चार आर्य सत्य - बुद्ध का कहना था कि संसार दुःखों का घर है। इस दुःख का कोई न कोई कारण अवश्य होता है। इन दुखों को रोकने के उपाय किए जा सकते हैं। इन्हें 'चत्वारि-आर्य-सत्यानि कहा गया है। इनका वर्णन इस प्रकार है-

1. दुःख यह संसार दुःखों से भरा हुआ है जन्म, मरण, बुढ़ापा, प्रियजनों का वियोग तथा अप्रियजनों का संयोग, रोग, वासनाएं आदि दुःख के कारण हैं। मनुष्य को सदा यह भय बना रहता है कि. कहीं वह सांसारिक सुखों से वंचित न हो जाए।

2. दुःख समुदाय दुःख का कारण इच्छा या तृष्णा है। इनका कभी अन्त नहीं होता। एक इच्छा के पूर्ण होने पर दूसरी उठ खड़ी होती है और यह चक्र चलता रहता है। इसी तृष्णा के कारण मनुष्य काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार पाँच भूतों का शिकार होता है। वह सदा राज-पाट, पद, धन, पुत्र, भोगविलास आदि की इच्छाओं से दुःखी रहता है। अतः उसका बार-बार जन्म होता है और वह दुःखों को भोगता रहता है।

3. दुःख निरोध - महात्माबुद्ध का कहना था कि तृष्णा का अन्त करने से मनुष्य सभी दुःखों से छुटकारा पा लेता है और मोक्ष को प्राप्त होता है।

4. दुःख निरोध मार्ग या अष्टांगिक मार्ग- यह चौथा आर्य सत्य है। महात्मा बुद्ध ने दुख को दूर करने के लिए आठ मार्ग बताए हैं जिनका पालन उन्होंने स्वयं भी किया था। इनका अनुसरण करके कोई भी व्यक्ति अपने दुःखों से छुटकारा पा सकता है। ये मार्ग सम्यक दृष्टि, सम्यक वचन, सम्यक संकल्प, सम्यक कर्म, सम्यक आजीव, सम्यक व्यायाम, सम्यक् स्मृति तथा सम्यक् समाधि हैं।

(B) दसशील तथा आचरण की प्रधानता- महात्मा बुद्ध ने आचरण की शुद्धता एवं पवित्रता बनाए रखने के लिए 'शील' पर विशेष बल दिया है। बौद्ध संघ के भिक्षुओं को मन, वचन तथा कर्म से पवित्र रहकर इनका पालन करना पड़ता था। ये शील इस प्रकार हैं- (i) अहिंसा, (ii) सत्य, (iii) अस्तेय (चोरी न करना) (iv) अपरिग्रह ( संग्रह का त्याग), (v) ब्रह्मचर्य, (vi) नृत्य व संगीत का त्याग, (vii) सुगन्धित पदार्थों का त्याग, (viii) असमय में भोजन का त्याग (ix) कोमल शय्या का त्याग तथा (x) कामिनी कंचन का त्याग।

इसमें गृहस्थ उपासकों के लिए प्रथम पाँच तथा भिक्षुओं के लिए दसों शील थे। बुद्ध की यह एक क्रान्तिकारी घोषणा थी और ये सब शील नर-नारी, युवा वृद्ध, राजा-रंक, ऊँच-नीच सबके लिए समान थे।

(C) अनीश्वरवाद महात्मा बुद्ध अनीश्वरवादी थे। वे संसार की उत्पत्ति के लिए किसी ईश्वरीय सत्ता में विश्वास नहीं करते थे। उनका विचार था कि कार्य-कारण की श्रृंखला से संसार चलता रहता है।

(D) क्षणिकवाद महात्मा बुद्ध संसार को नित्य न समझकर क्षणभंगुर समझते थे। उनका विश्वास था कि संसार की सभी वस्तुएँ क्षणिक तथा निरन्तर परिवर्तनशील हैं। जिस प्रकार नदी का जल एक क्षण भी स्थिर नहीं रहता, किन्तु तट पर बैठे व्यक्ति को वह स्थिर दिखाई देता था, इसी प्रकार पल-पल परिवर्तित सांसारिक वस्तुओं को भ्रमवश मनुष्य स्थायी समझ लेता है।

(E) अनात्मवाद महात्मा बुद्ध अनात्मवादी थे और आत्मा की अमरता में उनका कोई विश्वास नहीं था। उनका कहना था कि मनुष्य का व्यक्तित्व कुछ संस्कारों का समूह है। गाड़ी के कल-पुर्जों की तरह शरीर के तत्वों के अलग-अलग हो जाने पर आत्मा नाम की किसी स्थायी वस्तु की कल्पना नहीं की जा सकती है।

(F) कर्मवाद महात्मा बुद्ध कर्मवादी थे। उनका विश्वास था कि मनुष्य जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल प्राप्त होता है। यज्ञ, बलिदान, पूजा, स्तुति आदि से हम अपने कर्मों के फल को मिटा नहीं सकते हैं। हम जो पुण्यः या पाप करते हैं उसके फल के उत्तराधिकारी बनते हैं। अतः कर्म हमारे जीवन का अभिन्न अंग है।

(G) यद्यपि महात्मा बुद्ध ईश्वर तथा आत्मा के अस्तित्व को अस्वीकार करते हैं, किन्तु वे पुनर्जन्म के सिद्धान्त को मानते हैं। परन्तु उनका कहना है कि पुनर्जन्म आत्मा का नहीं वरन् अनित्य अहंकार का होता है। पुनर्जन्म कार्य करण के नियम द्वारा संचालित होता है। वासना और तृष्णा के नाश से ही मनुष्य का अहंकार मिट सकता है और उसके बाद ही मनुष्य पुनर्जन्म के चक्कर से छूटकर मोक्ष अथवा निर्वाण प्राप्त करता है, जिस प्रकार तेल या बत्ती के जल जाने के बाद दीपक स्वतः बुझकर शांत हो जाता है, ठीक उसी प्रकार तृष्णा व अहंकार के नाश होने पर मनुष्य परम शान्ति (निर्वाण) को प्राप्त होता है।

(H) अहिंसा - महावीर स्वामी की भाँति बुद्ध ने भी 'अहिंसा परमोधर्मः' के सिद्धान्त को माना और प्रचारित किया। उनका कहना था कि मनुष्य को अपने मन वचन तथा कर्म से किसी भी जीव को दुःख नहीं पहुँचाना चाहिए। इसके विपरीत उन्होंने महावीर स्वामी की तरह इस बात पर विश्वास नहीं किया कि पेड-पौधों तथा पत्थरों में भी जीवन होता है।

(I) जाति-पाँति का खण्डन महात्मा बुद्ध जाति प्रथा अथवा वर्ण-व्यवस्था में विश्वास नहीं रखते थे। वे सामाजिक एकता में विश्वास रखते थे और जन्म के स्थान पर कर्म को अधिक महत्व देते थे। उन्होंने बौद्ध धर्म के द्वार सभी जातियों एवं वर्गों के लिए समान रूप से खोल दिए थे। वे छुआ-छूत, ऊँच- नीच तथा छोटे-बड़े के भेदभाव को नहीं मानते थे। उन्होंने एक स्थान पर कहा था कि "हे भिक्षुओं ! जिस प्रकार बड़ी-बड़ी नदियाँ समुद्र में मिलकर अपना अस्तित्व खो देती हैं, उसी प्रकार भिक्षु के वस्त्र धारण करने पर उनमें वर्ण भेद नहीं रहता। धार्मिक जीवन से सभी ऊँच-नीच समान हो जाते हैं।'

(J) कर्मकाण्डों, यज्ञों तथा पशुबलि में अविश्वास महावीर स्वामी की तरह महात्मा बुद्ध भी कर्मकाण्डों, वाह्य आडम्बरों, यज्ञों तथा पशु बलि में कोई विश्वास नहीं रखते थे। वे पशु को मारना तथा पशु-बलि चढ़ाना पाप मानते थे। इसी कारण वे ब्राह्मणों को भी उच्च स्थान देने के पक्ष में नहीं थे।

(K) संस्कृत भाषा तथा वेदों में अविश्वास संस्कृत जनसाधारण की भाषा नहीं थी। अतः धर्म के संदेश लोगों तक पहुँच नहीं पाते थे। इसलिए महात्मा बुद्ध ने आम लोगों की भाषा में अपनी शिक्षाओं का प्रचार किया और संस्कृत का बहिष्कार किया। इसी प्रकार उन्होंने वेदों को ईश्वर वृत मानने से इन्कार कर दिया है और इस बात का प्रचार किया कि मनुष्य को सदा अपने अनुभव द्वारा ही आध्यात्मिक मार्ग खोजना चाहिए और किसी गुरू ग्रन्थ अथवा किसी बाहरी साधना का आश्रय नहीं लेना चाहिए।

 

बौद्ध धर्म का विकास

कम समय में ही बौद्ध धर्म सम्पूर्ण भारत में व्याप्त हो गया। अपने देहावसान के पूर्व ही बुद्ध को यह देखकर सन्तोष हुआ था कि मगध, कौशल, कौशाम्बी जैसे शक्तिशाली नरेशों एवं जनता तथा वज्जिमल्ल तथा शाक्य प्रजातन्त्रवादी राज्यों की साधारण जनता ने बौद्ध धर्म अंगीकार कर लिया था तथा समस्त मध्य भारत में बौद्ध बिहारों का जाल-सा विस्तृत था। ईसा पूर्व तीसरी सदी में जब सम्राट अशोक इस धर्म के महान भक्त और उपासक हुए तब बौद्ध धर्म भारत के बाहर व्याप्त होने लगा। बौद्ध धर्म के प्रचारकों ने लंका तथा ब्रह्मा (बर्मा) को अपने धर्म में परिवर्तित कर लिया। ये एशिया माइनर के मेसोपोटामिया तथा सीरिया देशों, अफ्रीका के मिस्र तथा यूरोप से मकदूनिया के देशों में भी पहुँच गए। उसी युग में बौद्ध धर्म मध्य एशिया में भी प्रसारित हो गया और एक अनुश्रुति के अनुसार अशोक का एक पुत्र कच्छ तथा उसके पार्श्ववर्त्ती प्रदेशों पर अपनी राज्यसत्ता स्थापित करने तथा बौद्ध धर्म का प्रचार करने में सफल रहा। अन्य अनुश्रुति के अनुसार चीन देश में बौद्ध धर्म बहुत ही पहले युग में पहुँच गया था। चीनी भाषा में बौद्ध धर्म ग्रन्थों का अनुवाद सर्वप्रथम कश्यप मातंग ने किया जो चीन देश को सन् 56 ई. में गया था।

कनिष्क के काल में भी बौद्ध धर्म राज्य धर्म था। सातवीं सदी के अन्त तक यह भारत में समृद्धिशाली रहा, जैसा कि ह्वानचांग तथा इल्सिंग के वर्णनों से प्रमाणित होता है। नालन्दा के महान बौद्ध धर्म के महत्वपूर्ण केन्द्र थे। बारहवीं तेरहवीं शताब्दियों में बंगाल और बिहार के पाल-नरेशों के राज्याश्रय में यह धर्म बना रहा। इस पाल युग में अनेक भारतीय बौद्ध आचार्य तिब्बत गए जहाँ उन्होंने बौद्ध धर्म को सुदृढ़ बनाया तथा सहस्रों बौद्ध ग्रन्थों का तिब्बती भाषा में अनुवाद किया। पाल राज्य के उत्तर पश्चिमी प्रदेश में कान्यकुब्ज (कन्नौज) के शासक बौद्ध धर्म के संरक्षक थे। उन्होंने भव्य बौद्ध बिहारों का निर्माण किया और उन्हें उदारता से दान दिया। नवीं तथा दसवीं सदी की अनेक बौद्ध गुफाएँ धर्म राजेश्वर, एलोरा, नासिक तथा दक्षिण के अन्य अनेक भागों में दृष्टिगोचर हुई हैं। औरंगाबाद तथा अन्य स्थलों में अपूर्ण बौद्ध गुहा- मन्दिर पाए गए हैं। बारहवीं सदी तक बौद्ध धर्म आन्तरिक रूप से दुर्बल और भ्रष्ट होने पर भी भारत में प्रचलित था। इसके बाद यवनकाल में भारत से यह विलुप्त हो गया परन्तु भारत के बाहर फलता-फूलता रहा। बौद्ध धर्म ने सन् 373 ई. में कोरिया में प्रवेश किया जहाँ से 538 ई. में जापान पहुँचा। ईसा की तीसरी सदी के पूर्व ही इण्डोचीन में बौद्ध धर्म व्याप्त हो चुका था और तिब्बत में सन् 640 में पहुँच गया था। इस प्रकार विकास का कारण बौद्ध धर्म की सरल शिक्षाएं बुद्ध का व्यक्तित्व, अनुकूल परिस्थितियाँ, राज्याश्रय, लोकप्रिय भाषा का प्रयोग आदि था।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  2. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  3. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  4. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  5. प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  8. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  9. प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
  10. प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
  11. प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
  12. प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
  13. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  14. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  15. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  16. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
  18. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
  19. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  20. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  21. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
  22. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
  23. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
  24. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
  25. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
  28. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
  29. प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  30. प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
  32. प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
  33. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  34. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  35. प्रश्न- ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाणों की व्याख्या कीजिए।
  36. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के प्रत्यक्ष प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के आत्मा सम्बन्धी विचार दीजिए।
  38. प्रश्न- सुख प्राप्ति ही जीवन का अन्तिम उद्देश्य है। बताइये।
  39. प्रश्न- चार्वाक के ज्ञान सिद्धांत की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए।
  40. प्रश्न- "चार्वाक की तत्वमीमांसा उसकी ज्ञान मीमांसा पर आधारित है।" विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- जैन महावीर के जीवन वृत्त तथा शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में जैन धर्म के योगदान का वर्णन कीजिए।
  43. प्रश्न- जैन दर्शन में स्याद्वाद किसे कहते हैं?
  44. प्रश्न- जैन दर्शन के सात वाक्य भंगीनय लिखिए।
  45. प्रश्न- सात वाक्यों का आलोचनात्मक दृष्टिकोण से वर्णन कीजिए।
  46. प्रश्न- जैनों के बन्धन तथा मोक्ष सम्बन्धी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  47. प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार द्रव्य का परिचय दीजिये।
  48. प्रश्न- द्रव्य के प्रकार बताइये।
  49. प्रश्न- द्रव्य को आकृति द्वारा स्पष्ट कीजिए।
  50. प्रश्न- जीव अथवा आत्मा किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- अजीव द्रव्य क्या है? व्याख्या कीजिए।
  52. प्रश्न- जैन दर्शन में जीव का स्वरूप क्या है?
  53. प्रश्न- जैन दर्शन के द्रव्य सिद्धान्त की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए।
  54. प्रश्न- जैन धर्म पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- जैन धर्म के पतन के कारण स्पष्ट कीजिए।
  56. प्रश्न- जैन धर्म व बौद्ध धर्म में समानताओं और असमानताओं का तुलनात्मक परीक्षण कीजिए।
  57. प्रश्न- जैन धर्म की शिक्षाएँ क्या थीं?
  58. प्रश्न- पुद्गल किसे कहते हैं?
  59. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र और धर्म पर टिप्पणी लिखिए।
  60. प्रश्न- जैन धर्म के पाँच महाव्रत बताइए।
  61. प्रश्न- जैन धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय बताइए।
  62. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  63. प्रश्न- सांख्य की 'प्रकृति' तथा वेदान्त की 'माया' के बीच सम्बन्ध की व्याख्या कीजिये।
  64. प्रश्न- गौतम बुद्ध के जीवन एवं उपदेशों का वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- बौद्ध धर्म के उत्थान व पतन के क्या कारण थे? समझाइये।
  66. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में बौद्ध धर्म का योगदान बताइये।
  67. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या आशय है?
  68. प्रश्न- बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्यों की विवेचना कीजिए।
  69. प्रश्न- बुद्ध ने कौन से दुःख के कारणों के चक्र बताए? बौद्ध दर्शन के तृतीय आर्य सत्य की विवेचना कीजिये।
  70. प्रश्न- बौद्ध धर्म पर लेख प्रस्तुत कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के चार सम्प्रदाय लिखिए।
  72. प्रश्न- क्षणिकवाद का सिद्धान्त क्या है?
  73. प्रश्न- बौद्ध धर्म के महत्त्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अनुसार निर्वाण प्राप्ति के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिए।
  75. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निर्वाण की व्याख्या कीजिये।
  76. प्रश्न- बौद्ध संगीतियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- महाजनपदों के नाम लिखिए।
  78. प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त क्या हैं?
  79. प्रश्न- भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की क्या देन थी?
  80. प्रश्न- क्या बौद्ध दर्शन निराशावादी है?
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति की विशेषताएँ लिखिए।
  82. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति के गुणों की व्याख्या कीजिए।
  83. प्रश्न- सत्, रज और तम गुण किसे कहते हैं?
  84. प्रश्न- प्रकृति के गुणों के क्या परिणाम होते हैं?
  85. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार सत्कार्यवाद की व्याख्या कीजिए।
  86. प्रश्न- सांख्य दर्शन के तत्व सम्बन्धी विचार लिखिए।
  87. प्रश्न- प्रकृति तथा पुरुष का अर्थ तथा सम्बन्ध बताइए।
  88. प्रश्न- ज्ञानेन्द्रियों की व्याख्या कीजिए।
  89. प्रश्न- पुरुष के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। पुरुष के अस्तित्व के लिए सांख्य द्वारा दिये गये तर्कों की विवेचना कीजिए।
  90. प्रश्न- सांख्य दर्शन की समीक्षा कीजिए।
  91. प्रश्न- सांख्य ज्ञानमीमांसा की विवेचना कीजिए।
  92. प्रश्न- सांख्य दर्शन के पुरुष की अनेकता की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- योग दर्शन से क्या तात्पर्य है? समझाइये।
  94. प्रश्न- पंतजलि ने योग सूत्रों को कितने भागों में बाँटा?
  95. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  96. प्रश्न- योग दर्शन के अभ्यास के अंग कौन-कौन से हैं?
  97. प्रश्न- योग दर्शन में तीन मार्ग कौन से हैं?
  98. प्रश्न- योग के अष्टांग साधन बताइए।
  99. प्रश्न- योगांग किसे कहते हैं?
  100. प्रश्न- योग दर्शन के पाँच नियमों की व्याख्या कीजिए।
  101. प्रश्न- योग' से आप क्या समझते हैं? योग साधना के विभिन्न सोपानों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  102. प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए।
  103. प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए तथा उसके अस्तित्व को सिद्ध करने सम्बन्धी प्रमाणों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  104. प्रश्न- वैराग्य क्या है? इसकी भेदों सहित व्याख्या कीजिए।
  105. प्रश्न- न्याय दर्शन से ईश्वर किन रूपों में कार्य करता है।
  106. प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण लिखिए।
  107. प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये? तथा न्यायशास्त्र का प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रमाण शास्त्र की व्याख्या कीजिए।
  109. प्रश्न- भारतीय तर्कशास्त्र में हेत्वाभास के प्रकार बताइए।
  110. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान' के स्वरूप और प्रकारो की व्याख्या कीजिये।
  111. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार सोलह पदार्थों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- प्रमा को परिभाषित करते हुए प्रमा के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- प्रमा की परिभाषा दीजिए तथा उसके सामान्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- प्रमाण की परिभाषा देते हुए प्रमाण के प्रमुख प्रकारों का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- न्याय के आलोक में पदार्थ के विभिन्न प्रकारों का विवेचन कीजिए।
  116. प्रश्न- शब्द-प्रमाण में शब्द को स्वतन्त्र प्रमाण माना गया है विवेचन कीजिए।
  117. प्रश्न- उपमान प्रमाण के स्वरूप का विवेचन करते हुए इसकी परिभाषा दीजिए।
  118. प्रश्न- 'न्याय दर्शन' में 'अनुमान प्रमाण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए एवं अनुमान प्रमाण के प्रकारान्तर भेदों का उल्लेख कीजिए।
  119. प्रश्न- अनुमान क्या है? परमार्थानुमान व स्मार्थानुमान को स्पष्ट कीजिए।
  120. प्रश्न- प्रत्यक्ष प्रमाण का स्वरूप क्या है?
  121. प्रश्न- न्यायदर्शन में निर्विकल्प प्रत्यक्ष का स्वरूप समझाइये।
  122. प्रश्न- न्यायदर्शन में उपमान प्रमाण का क्या स्वरूप है? न्याय दर्शन में उपमान प्रमाण का स्वरूप
  123. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में अनुमान प्रमाण का खंडन किस प्रकार करता है?
  124. प्रश्न- अनुमान प्रमाण में व्याप्ति की भूमिका समझाइये।
  125. प्रश्न- प्रमा और अप्रमा के भेद को स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- न्याय दर्शन में कितने प्रमाण स्वीकार किए गए हैं? सभी का वर्णन कीजिए।
  127. प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
  128. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों के नाम लिखिये।
  129. प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
  130. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
  131. प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
  132. प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
  133. प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
  134. प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
  135. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
  136. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन क्या है? न्याय दर्शन और वैशेषिक दर्शन में आपस में क्या सम्बन्ध है? वैशेषिक दर्शन में सात प्रकार के पदार्थ बताइए।
  137. प्रश्न- व्याप्ति क्या है? व्याप्ति की स्थापना किस प्रकार होती है?
  138. प्रश्न- 'गुण' और 'कर्म' पदार्थों की विवेचना कीजिए।
  139. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन की समीक्षा कीजिए।
  140. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन के स्वरूप पर प्रकाश डालिए?
  141. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन में अनुमान का क्या स्वरूप है?
  142. प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
  143. प्रश्न- संयोग और समवाय पर टिप्पणी लिखिए।
  144. प्रश्न- मीमांसा से क्या तात्पर्य है इसे भली-भाँति समझाइये।
  145. प्रश्न- पूर्व मीमांसा किसे कहते हैं?
  146. प्रश्न- द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
  147. प्रश्न- मीमांसा दर्शन में ज्ञान के कितने साधन माने गये हैं?
  148. प्रश्न- उपमान किसे कहते हैं?
  149. प्रश्न- अर्थापत्ति किसे कहते हैं?
  150. प्रश्न- अनुपलब्धि या अभाव किसे कहते हैं?
  151. प्रश्न- मीमांसा के तत्व विचार की व्याख्या कीजिए।
  152. प्रश्न- मीमांसकों ने 'आत्मा' का क्या स्वरूप बतलाया है?
  153. प्रश्न- शंकराचार्य ने ब्रह्म के कितने स्वरूपों की व्याख्या की है?
  154. प्रश्न- ब्रह्म और माया क्या है?
  155. प्रश्न- ब्रह्म और जीव क्या हैं?
  156. प्रश्न- माया में कितनी शक्तियों का समावेश है?
  157. प्रश्न- "ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या" शंकर के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? शंकर के ब्रह्म और जगत सम्बन्धी विचारों के सन्दर्भ में विवेचना कीजिए।
  158. प्रश्न- अद्वैत दर्शन में जीव के बंधन और मोक्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
  159. प्रश्न- प्रभाकर मत में अख्यातिवाद क्या है? और यह किस प्रकार भट्ट मत के विपरीत ख्यातिवाद से भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
  160. प्रश्न- शंकर का अद्वैत वेदान्त क्या है?
  161. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त में निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म में क्या भेद बताया गया है? विवेचना कीजिए।
  162. प्रश्न- शंकर के 'ईश्वर' विचार की व्याख्या कीजिये।
  163. प्रश्न- जीव किसे कहते हैं?
  164. प्रश्न- शंकर के अद्वैतवाद तथा रामानुज के विशिष्ट द्वैतवाद में अन्तर बताइए।
  165. प्रश्न- वेदान्त दर्शन किसे कहते हैं? शंकर के वेदान्त दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  166. प्रश्न- क्या विश्व शंकर के अनुसार वास्तविक है? विवेचना कीजिए।
  167. प्रश्न- रामानुज शंकर के मायावाद का किस प्रकार खण्डन करते हैं?
  168. प्रश्न- शंकर की ज्ञान मीमांसा का वर्णन कीजिए।
  169. प्रश्न- शंकर के ईश्वर विचार की व्याख्या कीजिए।
  170. प्रश्न- माया क्या है? माया सिद्धान्त की रामानुज द्वारा दी गई आलोचना का विवरण दीजिए।
  171. प्रश्न- रामानुज के विशिष्टाद्वैत वेदान्त से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  172. प्रश्न- रामानुज के अनुसार ब्रह्म क्या है? ईश्वर व ब्रह्म में भेद बताइए।
  173. प्रश्न- रामानुज के अनुसार मोक्ष व उनके साधनों का वर्णन कीजिए।
  174. प्रश्न- जीवात्मा के भेदों को स्पष्ट कीजिए।
  175. प्रश्न- रामानुज के अनुसार ज्ञान के साधन क्या हैं?
  176. प्रश्न- रामानुज के 'जीव सम्बन्धी विचार की व्याख्या कीजिये।
  177. प्रश्न- रामानुज के जगत की व्याख्या कीजिए।
  178. प्रश्न- विशिष्ट द्वैत दर्शन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  179. प्रश्न- चित् व अचित् तत्व क्या हैं?
  180. प्रश्न- बन्धन और मोक्ष क्या है?
  181. प्रश्न- चित्त क्या है?

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